जीने के लिए
यह एक ऐसा सवाल है,
जिसपर दुनिया अक्सर गुफ्तगू करने के लिए,
मजबूर कर देती है।
कोई मेहरबानियां नहीं दिखाते हैं यहां,
बस तरह-तरह की बातों में उलझाकर रखते हैं,
इसकी वजह से,
काफी तकलीफें जान पर आ पड़ती है।
इस सियासत में भूचाल लाने वाले लोगों की एक बड़ी जमात है,
नज़रों से देखा जाए तो,
यही दिखता आघात है।
सम्भल कर जीना चाहिए यहां,
इसकी अहमियत है।
गुरूर भी जरूरी है,
इसकी वजह से ही मिलती इज्जत है।
ज्यादा झुक कर मिलने पर,
कद्र खत्म हो जाती है।
कभी तो ज्यादा झूकने वाले की इस मुहिम में,
अहम् रखने वाले लोग,
शरीफों के पीठ को,
पायदान बना देने में,
कोई कसर नहीं छोड़ती है।
इसकी वजह से ही,
हमें उम्मीद बनाएं रखने में,
गुरूर की गुन्जाईश रखनी चाहिए यहां।
इसकी वजह से ही,
हमेशा आगे बढ़ने में मदद मिलेगी अवश्य ही यहां।
— डॉ. अशोक, पटना