क्यों करना औरों से आस!
खुद पर कर ले तू विश्वास,
क्यों करना औरों से आस!
अपना हाथ है जगन्नाथ,
आशा से बढ़ती है प्यास।
खोद ले अपना कूप तू,
बन जा अपना भूप तू,
कण-कण में ईश्वर बसा,
ईश्वर का है रूप तू।
तू बल का भंडार है,
तू जलता अंगार है,
खींच ले निज गाड़ी मना,
तू अपना शृंगार है।
आशा ही निराश करती है,
आशा हताशा भी हरती है,
उम्मीद की एक किरण ही,
साहस से घट को भरती है।
— लीला तिवानी