कविता

क्यों करना औरों से आस!

खुद पर कर ले तू विश्वास,
क्यों करना औरों से आस!
अपना हाथ है जगन्नाथ,
आशा से बढ़ती है प्यास।

खोद ले अपना कूप तू,
बन जा अपना भूप तू,
कण-कण में ईश्वर बसा,
ईश्वर का है रूप तू।

तू बल का भंडार है,
तू जलता अंगार है,
खींच ले निज गाड़ी मना,
तू अपना शृंगार है।

आशा ही निराश करती है,
आशा हताशा भी हरती है,
उम्मीद की एक किरण ही,
साहस से घट को भरती है।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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