कविता

कैलेंडर में कैद है वसंत

सुबह-सुबह

कैलेंडर पर नजर गई

दिख गया वसंत!

खिड़की खोलने की कोशिश की

नहीं खुली, जाम के कारण।

जाम की समस्या आम है।

जीवन पर धुंध

दिखता नहीं चाम है।

धुंध हर दिल में छाया है

मेक अप से, पोती जा रहीं काया हैं।

दरवाजा जैसे-तैसे खोला,

बाहर वसंत तो क्या?

शीत भी दिखा नहीं,

वायुगुणवत्ता सूचकांक को,

जीवन पचा नहीं।

मोबाइल पर संदेश आया,

हवा की गुणवत्ता बेहद खराब है।

जैसे जहरीली शराब है।

वसंत की मजबूरी है

बाहर नहीं जा सकता,

कैलेंडर में कैद है।

जब प्रारंभ ही नहीं,

तो कैसा अन्त।

प्रेमी युगल कैद है मोबाइल में

कैलेंडर में कैद है वसंत।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)

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