ऋतुराज बसंत की आहट
मीठी सी गुदगुदी देने वाली,
ऋतुराज बसंत ऋतु,
मन को तसल्ली देती हुई घर आ रही है।
मन को तसल्ली देती हुई,
खुशियां भरपूर देने,
घर आंगन में रहने की उम्मीद लगाए,
पुष्प वर्षा सी सुकून देने वाली ताकत बनकर,
पूरी दुनिया में खलबली मचा,
देने की कोशिश कर,
नवीन चेतना को जागृत करने,
धरा पर बसंत ऋतु बनकर,
आसमां में एक सुखद अहसास दिलाने,
नवीन प्रयास और प्रयोग करने की,
खुशियों संग हर रिश्ते में,
प्रगाढ़ता बढ़ाकर जीवन्त रूप में,
हरेक पड़ाव पर छा गई है।
पीली चादर ओढ़कर,
धरती में उन्नत खोज करते हुए,
दुगुनी खुशियां बढ़ा रहीं हैं।
सर्दी की तकलीफें खत्म कर,
नवजीवन प्रदान करने,
सहचर और सहभागी बनकर,
हरेक जीवन्त स्वरूप में,
खुशियां भरपूर बर्षाते हुए,
नवीन चेतना को जागृत करने में,
बड़ी चंचलता और उत्साह से,
अदम्य साहस के साथ,
अपनी बातों से रूबरू कराने,
मंद-मंद गति से चल कर,
सबकी खिदमत करने की चाहत लेकर,
आज़ जिम्मेदारियों को पूरा करने,
उर्जा से परिपूर्ण करने की हिम्मत करके,
हमारी संस्कृति को,
नवीन पहचान दिलाने में,
अहम् भूमिका निभा रही है।
अबनी से अम्बर तक,
कृषकों की भक्ति पर,
खेतों की जरूरत पर,
नव युवक और युवती को,
एक सृजन की जरूरत पर,
ज्ञान दर्पण बनकर,
सुगंध और उमंग भरकर,
आशान्वित बना रही है,
बसंत ऋतु की परिकल्पना,
अब साकार होने जा रही है।
— डॉ. अशोक, पटना