कविता

बाल कविता

व्याकुल व्याकुल सा है मन
उलझन में पड़ा ये तन
घर की अपनी याद सतावें
बच्चों की मुस्कान निराले
बच्चों बिन ये दिन विराने
बच्चे हैं तो दिन सुहाने
मम्मा मुझे ये चाहिए
मम्मा मुझे अभी चाहिए
इनकी बातें गूंजती ऐसे
मां की कलेजे को चिरती जैसे
इनकी तोतली बोली ऐसे
मानो कोयल कूक जैसे
मां की वासल्यता निराले
इनके जैसे कोई न प्यारे।

— विजया लक्ष्मी

विजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी (स्नातकोत्तर छात्रा) पता -चेनारी रोहतास सासाराम बिहार।

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