कविता

हृदय

सागर मध्य मौन है
किनारे गर्जन कर रहा
छुपाए अंदर शब्द सहस्र
उमड़ घुमड़ रहे अजस्र
अटक गए हैं अधर पर
होकर तितर-बितर
कह नहीं सका मन
रूक नहीं सके कदम
यह कैसी पीड़ा है
जिसे न छुपा सकूं
जिसे न बता सकूं
सहेजूं तो कहां रखूं
नयन हो रहे असहज
किंचित कुछ ढलने को
कर्ण हो गए बधिर
किंचित कुछ सुनने को
यह कैसी प्रमाद है
छिना तूने प्रसाद है
एक स्वप्न जीते जीते
दीप मौन हो गए
मौन नयन में भी
अंजन गौण हो गए
कर्मकार लिख गया
अंधकार छा गया
जीवन अर्थ खो गया
सब कुछ व्यर्थ हो गया
पहले भी सुबह होते ही
तुम संग साथ थे
मेरी बांहों में, मेरे हांथों में
तेरी बांहें, तेरे हांथ थे
आज भी सुबह होता है
तुम संग साथ होते हो
पहले समक्ष थे
आज आंखों में होते हो
हे ईश, है एक निवेदन
आशीषों का मधुर छांव दें
कभी मां कभी पिता का
रूप कमल मैं धर सकूं
जो गहरे जल तल में
गहन पीड़ा में भी
तना बन तना रहे
शांत प्राण जल में भी
स्व निनाद छुपा रहे
धीरे धीरे निखर सकूं
नहीं कभी बिखर सकूं
हर पल ठहर ठहर
पीता जो जीवन जहर
झेला वही काल कहर
बन सका वही शंकर
क्या हुआ जो कभी
दीप संग सीप भांति
कोख में मोती बुने
मेरे दोनों हांथों में
दो बेटियों के हांथ हैं
बंधी हैं उम्मीदों से
धड़कनों के साथ हैं
अब यकीन कर रही
नवल स्वप्न बुन रही
गुणी गुण गगन बने
सुभी धुन पवन बने
जीवन अनवरत है
युद्ध में सतत रत है
आगत विगत हो रहा
जीवन सदा जीवंत है
मंगल दीप जलता रहे
जीवन अर्थ पलता रहे
अवस्था चाहे जैसी हो
जीवन युद्ध चलता रहे
चलता रहे चलता रहे!

— श्याम सुंदर मोदी

श्याम सुन्दर मोदी

शिक्षा - विज्ञान स्नातक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से प्रबंधक के पद से अवकाश प्राप्त, जन्म तिथि - 03•05•1957, जन्म स्थल - मसनोडीह (कोडरमा जिला, झारखंड) वर्तमान निवास - गृह संख्या 509, शकुंत विहार, सुरेश नगर, हजारीबाग (झारखंड), दूरभाष संपर्क - 7739128243, 9431798905 कई लेख एवं कविताएँ बैंक की आंतरिक पत्रिकाओं एवं अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित। अपने आसपास जो यथार्थ दिखा, उसे ही भाव रुप में लेखनी से उतारने की कोशिश किया। एक उपन्यास 'कलंकिनी' छपने हेतु तैयार

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