लौ जलाना चाहिए
प्रेम का दरिया दिलों में फिर बहाना चाहिये
ज़िन्दगी को प्रेम के रंग से सजाना चाहिये |
छा गयी है धुन्द जग में ढक गयी इन्सानियत
इस लिये इन्सानियत का वन लगाना चाहिये |
ज़िंदगी रूठी है जिनसे ग़म जदा रंजूर जो –
उन दिलो बुझ रही जो लौ जलाना चाहिये |
आशियाँ जिनका नहीं अपना नहीं जो यतीम हैं –
ऐसे हर मासूम को अपना बनाना चाहिये |
भेद और नफ़रत दिलों की दूर हो यह चाह है
प्रेम के दीपक से जन मन जगमगाना चाहिये |
प्यार का तूफ़ान थामें से कभी थमता नहीं –
प्यार की आगोश में जीवन बिताना चाहिये |
चहुँ दिशाएँ गा उठेंगी खुश नुमा होगा जहाँ –
भेद मन से सब मिटा के मुस्कराना चाहिये |
फैलता ही जा रहा है नफरतों का ज़हर यहाँ
भेद भाव मिटा के दिल से दिल मिलाना चाहिये |
मंजूषा श्रीवास्तव
“मृदुल”
लखनऊ उत्तर प्रदेश