डिफॉल्ट

लौ जलाना चाहिए

प्रेम का दरिया दिलों में फिर बहाना चाहिये
ज़िन्दगी को प्रेम के रंग से सजाना चाहिये |

छा गयी है धुन्द जग में ढक गयी इन्सानियत
इस लिये इन्सानियत का वन लगाना चाहिये |

ज़िंदगी रूठी है जिनसे ग़म जदा रंजूर जो –
उन दिलो बुझ रही जो लौ जलाना चाहिये |

आशियाँ जिनका नहीं अपना नहीं जो यतीम हैं –
ऐसे हर मासूम को अपना बनाना चाहिये |

भेद और नफ़रत दिलों की दूर हो यह चाह है
प्रेम के दीपक से जन मन जगमगाना चाहिये |

प्यार का तूफ़ान थामें से कभी थमता नहीं –
प्यार की आगोश में जीवन बिताना चाहिये |

चहुँ दिशाएँ गा उठेंगी खुश नुमा होगा जहाँ –
भेद मन से सब मिटा के मुस्कराना चाहिये |

फैलता ही जा रहा है नफरतों का ज़हर यहाँ
भेद भाव मिटा के दिल से दिल मिलाना चाहिये |
मंजूषा श्रीवास्तव
“मृदुल”
लखनऊ उत्तर प्रदेश

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016

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