ग़ज़ल
फिर से आ जाओ ज़िंदगी बनकर
मुझपे छा जाओ बेख़ुदी बनकर
जा रहा हूं तुम्हारी बज़्म से पर
फिर से आऊंगा ज़िन्दगी बनकर
शाम से दिल बुझा बुझा सा है
अब तो आ जाओ रोशनी बनकर
ग़म की महफ़िल सजाए बैठे हैं
कोई तो आए अब ख़ुशी बनकर
हम कभी के यहां से उठ जाते
तुम न मिलती जो बंदगी बनकर
बड़ी हलचल है दिल के कोने में
कोई छा जाए ख़ामुशी बनकर
— ओम निश्चल