ग़ज़ल
सोच हरदम रही बुरी उसकी।
ढापता मैं रहा कमी उसकी।
कोसता जो रहा सदा हमको,
चाहते हम रहे खुशी उसकी।
उसको परवाह कुछनहीं लेकिन,
दिलकोभाती सदा हँसी उसकी।
इश्क़ जब से हुआ मुझे उससे,
एक तीरथ सी है गली उसकी।
उसका अंदाज़ तल्ख़ तीखा पर,
बात फिर भी लगी सही उसकी।
— हमीद कानपुरी