तुम बिन
कहीं भी लगता नहीं अब मन,
सुना सा गमगीन मन का भवन,
अधूरा है तुम बिन मेरा जीवन,
मचाती शोर यादें रह रह उफन ।
तुम परदेश साजन, मन मेरा रोया,
कल बेहतर हो हमारा आज खोया,
प्यारी यादों को क़रीने से संजोया,
विश्वास विटप मिल हमने ये बोया ।
इन साज श्रृंगारों में बस तुम्हें देखती,
स्पर्श वो घर के हर कोने में हूं ढुढ़ती,
बिछौने की सिलवटों को संवारती,
सुबह सांझ घर आंगन यूं बुहारती ।
डायरी के पन्नों में तुम्हें ही रचती हूं,
अनबन सारी मन की लिख देती हूं,
आओगे जब पढ़ लेना कह देती हूं,
अकेले हो तुम भी, बस हॅंस देती हूं ।
बीतेंगी अंशात रातें होगा उजियारा,
हम बनेंगे एक दूजे का सच्चा सहारा,
छुपा लेती हूं मन का वो शोक सारा,
घड़ी आएगी “आनंद” रोशन बहारा ।
संस्कारों की खुशबू सप्तपदी मेल,
तपस्या, त्याग, समर्पण का खेल,
एक दूजे के संग चले जीवन रेल,
प्यारा बंधन दो आत्माओं का मेल ।
— मोनिका डागा “आनंद”