संस्मरण

हम तुम….कल और आज

कल और आज

हम तुम जब पहली बार मिले थे, अजनबी से।देखा एक दूजे को और मन को भा गये। न पहचान थी, न प्यार का चक्कर। जैसे ही रिश्ता तय हुआ, प्रणय बंधन हो गया। न प्यार की झंकार हुई,  न धड़कनों का गीत सुना हमने। अपनेपन के साथ आत्मीयता बढ़ती गयी। एक दुसरे के पूरक बन गये हम। प्रेम पनपने लगा। जिम्मेदारी का बोझ कम होता गया। जीवन बगिया खिलती रहख। यौवन की पगडंडी पर सफर जारी था। एक दूजे हाथ थामे।

धीरे धीरे निकटता इतनी बढ़ी कि बिन बताये मन की बात दोनों समझने लगे। ‘बिनधास्त’ लड़ने लगे। अभी लड़े, अभी जुडे। हमराही संग खुशियां मिली कभी रुसवाई का आलम रहा। दर्द एक का दूसरे को पीड़ा देने लगा। चाहे पास रहे या दूर, साथ रहे या अपने आप में व्यस्त। आपाधापी, तनाव जिंदगी का अहम हिस्सा थे। लेकिन एक दुसरे का हाथ थामे रहे। न कभी वैलेंटाइन डे मनाया, न पार्टी।

बच्चों के लिए  झगड़ते भी। कभी एक डांटता, दूजा सहलाता।

प्यार भरी छोटी सी दुनिया। छोटी छोटी थी खुशियां।

अब संध्या बेला में जब नन्हों के परों में बल आ गया है, उड़ने को बेताब है वे। खूब हौसला दिया और शुभकामनायें, आशीष भी।

अब हम दोनों साथ है।

साथ की चाहत भी है।

अब साथ बैठकर टी वी शो देखते हैं, बाकायदा बहस भी करते है।

कदमों की आहट अब धीमी हुई है। 

लड़खड़ाने लगे हैं पांव।

चाय, नाश्ते के साथ दवाइयां लेकर बैठते हैं। अखबार पढते है। साथ घूमते है।

हम कल न तो कभी लैला मजनूं थे, न होंगे कभी। प्रणय बंधन में बंधे प्रिय जीवन साथी थे।

आज एक दूजे की जरूरत, साथी, मित्र, हमराही है।

संतुष्ट है हम। जिंदगी ने हमें मालामाल किया है। भरभर खुशियां दी है। सबकुछ है, जिसकी हमें चाहत थी।।

आज हमारा मनभावन है। बच्चों ने हमारा गौरव बढ़ाया है। बढा रहे है।

प्रभु जी शुकराना करते है हम।

कोई हारी बीमारी न आये परम प्रभु, हर पल अर्चना करते है।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८

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