अजनबी से रिश्ते
“श्रुति, क्या कर रही हो अब तक?”
“मुझे जल्दी जाना है आज।”
” चले जाओ। मैं ने कब रोका है।”
” लिपस्टिक लगाना जरूरी है?”
निमित्त और श्रुति का रोज किसी न किसी बात पर उलझना, शाति देवी को अखरता। दोनों भूल जाते गिले शिकवे, लेकिन उन्हें लगता कि शायद वे अब दाल में मुसल सी बनती जा रही है। जब से अभय नहीं रहे, वे अकेलेपन की शिकार होती जा रही है। पास होकर भी सबसे दूर होती जा रही है।
श्रुति और निमित्त अपनी दुनिया में व्यस्त।
शांति देवी की उलझनों से दूर, अपनी आपा धापी और रोजमर्रा के जीवन चक्र में उलझे हुए। सब साथ होते हुए भी दूर।
घर सिर्फ चारदीवारी सा, नितांत अकेला, और अजनबी से रिश्ते।