मुक्तक/दोहा

दोहा

माँ शारदे


मातु सदा देना मुझे, बस इतना वरदान।
नित-नित बढ़ता ही रहे, नूतनता का ज्ञान।।

मुझे नहीं कुछ है पता, करना पूजा पाठ।
जाने कैसी बुद्धि है, हुई उमर है साठ।।

इतना सा वर दीजिए, हो मम का ‌ उद्धार।
हाथ शीष पर आपका, समझूँ जीवन सार।।

सतपथ ही चलता रहूँ, माँ दो मुझको सीख।
कौन और देगा भला, ऐसे मुझको भीख।।

जितने भी अक्षर लिखूँ, हों सब तेरे नाम।
तेरे चरणों में सदा, मम जीवन सुख धाम।

मातु शारदे दीजिए, हमको भी वर आज।
विद्या ज्ञान बुद्धि का, दो भंडारण साज।।

वीणा पाणी आपको, नमन है बारम्बार।
सुघड़ ज्ञान भंडार माँ, महिमा अपरम्पार।।


वरदान


मुझे मिले उपहार में, इक ऐसा वरदान।
ईश चरण मम शीश हो, बस इतना हो ज्ञान।।

कैसे हो माँ तेरी पूजा, या करना है पाठ।
जाने कैसी बुद्धि है, उम्र हो रही साठ।

माँ इतना वरदान दो मुझे, हो मम का उद्धार।
हाथ शीष पर रहे सदा, समझूँ जीवन सार।।


वसंत


पीली चादर छा गई, फैल गया उल्लास।
धरती अंबर में हुआ, सुभदा का अधिवास।।

सरसों फूले खेत में, गाएंँ मंगल गान।
ऋतु आ गया वसंत का, हम भी छेड़ें तान।।

मोहक पुष्प पलाश के, देते अब संदेश।
अमराई की धूम यूँ, लाया नव परिवेश।।

कोमल कोंपल कह रही, सुनो हमारी बात।
ठंडी रातें हो गई, मोहक हुई है गात।।

मधुकर करते मौज से,करें आज रस पान।
हर प्राणी पुल्कित हुए, समझें अपना मान॥

पूजनीय माँ शारदे, सुनो हमारी बात।
रोग शोक से मुक्त हों, मम सुंदर जज़्बात।।


विविध


मुझे बुरा जो कह रहे, उनका है आभार।
इससे उत्तम और क्या, हो सकता उपहार।।

तेज कदम जो भागते , मंजिल जिनका भार।
बहुत बड़ा जिनके लिए, पावन जीवन सार।।

रंग बदल कर आप भी, बदल लीजिए ताज।
जीवन में सबसे बड़ा, उत्तम है यह काज।।

लोग भले ही आपका, नित्य बिगाड़ें काज।
अनदेखा उनको करें, ठेलठाल कर लाज।।

मंगल कारी आज का, दिवस बहुत है खास।
नहीं किसी से आस का, खुद इतना विश्वास।।


यमराज


आज सुबह यमराज ने, दिया निमंत्रण एक।
साथ-साथ यह भी कहा, मत देना तुम फेंक।।

जाना अगली बार है, तब तक खाओ केक।
चलना मेरे साथ में, लाठी डंडा टेक।।

महाकुंभ में आप भी, चलना मेरे साथ।
पकड़ें रहना ध्यान से, कसकर मेरा हाथ।।


ईशान


रखते हैं हम सब सभी, ध्यान कोण ईशान।
घर का जब निर्माण हो, कहते पावन स्थान।।

दिशा हमें है दे रही, दृष्टि रही है देख।
बाकी ईश्वर ही करें, जीवन का हर लेख।।

पावन मन की भावना, और कोण ईशान।
धर्म ग्रंथ में है लिखा, ऐसा सत्य विधान।।

जीवन में होता सदा, समय-समय का खेल।
पूजन वंदन बाद भी, बनते जैसे रेल।।

ईश कृपा जब तक रहे, तब तक ऊँचा माथ।
कभी रूठ जाये तभी, होते खाली हाथ।।


उपहार


मुझको भी मिल जाएगा, ईश्वर का उपहार।
ईश कृपा से मिलेगा, मम जीवन आधार।।

नहीं अधिक की चाह है, और न कोई लोभ।
जीवन तो चल ही रहा, इसमें कैसा क्षोभ।।

मेरा जो है मिलेगा, वो भी तो उपहार।
जो मेरा है ही नहीं, होगा क्यों अधिकार।।

हर प्राणी खुशहाल हो, ऐसा हो उपहार।
किंचित दु:ख भी किसी के, आये कभी न द्वार।।

संसारी जन हों सदा, आपस में हो प्यार।
फूलों की बगिया सदृश, रखना प्रभु संसार।।


किरण


एक किरण से हो सदा, नव पथ का निर्माण।
वही किरण भी दे सदा, जीवन में सुख प्राण।।

सबके जीवन में सदा, नव किरणों की ज्योति।
आशाओं का पुष्प हो, भास्कर देव करोति।।

भोर किरण देती हमें, नित्य नया संदेश।
रहा समझ जो भी इसे, होता वही विशेष।।


वसुधा


पीड़ा से बेचैन है, अपनी वसुधा आज।
नहीं समझते हम यहाँ, मस्त करें निज काज।।

धरती दोहन का बढ़ा, अब वो रही कराह।
कौन सुनता है भला, इस माता की आह।।

सभी प्रकृति पर हैं करें, नित- नित अत्याचार।
मिलकर वसुधा दे सजा , तब मआँचल हम सब नोचते, वसुधा का हम नित्य।
दोहन जल भी हम करें , कहें दोष आदित्य।।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

Leave a Reply