कविता

साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी

सूरज मल छोटी बाई की, कनक प्रभा संतान।
मातु पिता ने दिया कला था, सुंदर प्यारा नाम।।

विवेक शील ममता मयी, संकोची मगर स्वभाव।
कुशाग्र बुद्धि की कला थीं, भविष्य साध्वी भाव।।
अल्प आयु में ही उन्होंने, लिया शैक्षणिक प्रवेश।
चार वर्ष में ही पाया था, मुमुक्षु स्थान विशेष।।

तेरा पंथी श्री तुलसी से, पाया दीक्षा ज्ञान।
गुरु का बड़ा दिवस पावन था, उनका जब सम्मान।।
सूरज मल छोटी बाई की, कनक प्रभा संतान।
मातु पिता ने दिया कला था, सुंदर प्यारा नाम।।

बुद्धिमान अरु जगत हितैषी, संकोची था‌ भाव।
भक्ति पूर्ण अरु दया स्वामिनी, भविष्य साध्वी भाव।।
अल्प आयु में ही प्रण करके , ले शैक्षणिक प्रवेश।
चार वर्ष में ही पाया था, मुमुक्षु स्थान विशेष।।

मोहक उत्तम छवि थी उनकी, देती‌ नव संदेश।
देती ऐसा ज्ञान सदा वो, मिटते उर के क्लेश।।
श्रमण सुता की होती पूजा, नित नित जय जयकार।
तेज पुंज सी लौकिक आभा, देता जन आधार ।।

कालखंड फिर ऐसा आया, थीं इक्यासी वर्ष।
कनक प्रभा ने छोड़ी वसुधा, किया स्वर्ग को स्पर्श।।
उनकी पावन गौरव गाथा, गाते मिल। हम गान।
पुष्प भाव के अर्पित करके, करते माँ का ध्यान।।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

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