कविता

अंतर मिटते देखा

धार्मिकता और धर्मांधता में भेद मिटते देखा
आज इंसान को हमने हैवान बनते देखा !

पाप पुण्य के रस्सी कस्सी में आम जन को उलझकर
धर्म के ठेकेदार को आपना उल्लू सीधा करते देखा !

धरती पर कीड़े से रेगते इंसानो की परवाह करता है कौन
सियासदा को उनका बस सौदा ही करते देखा !

हम समझ न पाये कुछ , इससे फर्क किसको पड़ता
हर किसी को हमेशा अपना फायदा ही उठाते देखा !

मानवता का पाठ हर धर्म में सभी को पढ़ते
लेकिन मानवता को सबसे ज्यादा धर्म के नाम पर रौदते देखा !

— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P

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