डगमगाने न दे जो अपने पथ से ऐसे संस्कार चाहिए
किश्ती को जो डूबने से बचा सके ऐसी पतवार चाहिए
जड़ें काट दे बुराई की अच्छाई में ऐसी धार चाहिए
नफरत की तेज़ आंधियों ने उजाड़ डाला यह खिलता चमन
बहती रहे जो प्यार की हृदय में ऐसी बयार चाहिए
करे जो छुप कर पीठ पर न ऐसा वार चाहिए
छक्के छुड़ा दे जो दुश्मन के सुनकर ऐसी ललकार चाहिए
लोग लेते हैं पैसा भाग जाते हैं दूर विदेश आजकल
लेकर लौटा न सके जिसे कोई न ऐसा उधार चाहिए
बढ़ा दे जो बीच में दूरियां न ऐसी तकरार चाहिए
माफ कर दे छोटी मोटी बातों को ऐसा दिलदार चाहिये
बेईमानी की आदत पड़ गई है सबको आज ज़माने को
करे जो काम ऐसा ईमानदारी का कोई तो हकदार चाहिए
शब्द भी करते है घायल न उसके लिए तलवार चाहिए
प्यार के फूल खिले हर तरफ ऐसी बहार चाहिए
नफरत करने वालों से तो भरा है यह सारा जहान
प्यार की कद्र करे जो ऐसा कोई तलबगार चाहिए
ईमानदारी से ही जो फले फूले ऐसा कोई कारोबार चाहिए
पेट भर के खाना मिल जाये बस ऐसा रोजगार चाहिए
सिद्धान्तों की बात यहां कौन करता है इस ज़माने में
डगमगाने न दे जो अपने पथ से ऐसे संस्कार चाहिए
— रवींद्र कुमार शर्मा