मची फगुनाहट
चल रही मदमस्त पुरवाई,
मौसम ने ली है अंगड़ाई,
खेतों में फसलें लहलहाई,
खुशियां यहां-वहां बिखराई ।
फूल खिले रंग-बिरंगे प्यारे,
भंवरे गुनगुनगुन करते सारे,
अमुआ बैठ कोयल कुहू करे,
तन मन सुधा रस सुखद भरे ।
फागुन की मची फगुनाहट,
रंगों भरी प्यारी गुदगुदाहट,
अबीर गुलाल उड़े हर चौखट,
मनवा डोले इत उत नटखट ।
मुस्काएं मेरी सारी सखियां,
प्रीत रंग में रंगी मैं गुजरियां,
रंग दे मोहे आज सांवरिया,
हरा, लाल, गुलाबी, केसरिया ।
“आनंद” घन नटवर गिरधर,
पावन कर दे ये मन मंदिर,
कर दे चंचल मन को स्थिर,
ओ होरी के रसिया मनोहर ।
— मोनिका डागा “आनंद”