गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मुझमें एक अधूरा जीवन रहता है तो रहने दो।
ख्वाहिश का पूरा खाण्डववन रहता है तो रहने दो।
फूलों की पंखुड़ियां नोचा और हवा में उड़ा दिया,
खुशबू के घर में वो प्रतिक्षण रहता है तो रहने दो।
मन मयूर हो नाच उठा और ठिकाना भूल गया है,
दिल को बना नया आशियाना रहता है तो रहने दो।
कली चुराकर फूल सजाकर माला एक पिरोयी है,
हार गले का बनकर ही वो रहता है तो रहने दो।
भौंरों ने चूसा कलियों को फूलों का रसपान किया,
बचा हुआ मकरन्द फूल पर रहता है तो रहने दो।
जंगल में पेड़ों की पत्ती सूख गयी बिन पानी के,
खिलता जीवन फूल -फलों में रहता है तो रहने दो।

— वाई. वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

द्वारा विद्या रमण फाउण्डेशन 121, शंकर नगर,मुराई बाग,डलमऊ, रायबरेली उत्तर प्रदेश 229207 M-9670040890

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