लघुकथा

दानपात्र

“साहब! बहुत ठंड है। चाय के लिये पैसे दे दीजिये। पुण्य मिलेगा,” एक भिखारी ने सुनील के पीछे से आवाज़ दिया। आवाज़ जानी-पहचानी लगी। सुनील पीछे मुड़ा। उसकी नज़र भिखारी पर गयी। उसे देखते ही वह चौंक गया और बोला,”तू यहाँ शिमला में क्या कर रहा है? तू तो दिल्ली के मंदिर के सामने बैठता था। मैंने आते-जाते तुझे पैसे दिये हैं।”
भिखारी हिचकिचाते हुये कहा,”जी मैं वही हूँ। मैं हर साल गर्मी में शिमला आ जाता हूँ क्योंकि दिल्ली की गर्मी में भीख माँगना बहुत मुश्किल है। इस समय यहाँ टूरिस्ट सीजन होता है।”
“क्या?”
“क्यों मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा है,” सुनील को चौंकते हुये देख भिखारी ने कहा।
“कहाँ रहते हो?”
“होटल में। दिल्ली की गर्मी बर्दाश्त नहीं होती और न ही हमारे पास एसी है। बस चला आता हूँ। आप लोग जैसे दानियों पर जीवन का गुजर-बसर हो जाता है।”
किंकर्तव्यविमूढ़ सुनील का दाहिना हाथ जेब में ही रह गया।

— डाॅ अनीता पंडा ‘अन्वी’

डॉ. अनीता पंडा

सीनियर फैलो, आई.सी.एस.एस.आर., दिल्ली, अतिथि प्रवक्ता, मार्टिन लूथर क्रिश्चियन विश्वविद्यालय,शिलांग वरिष्ठ लेखिका एवं कवियत्री। कार्यक्रम का संचालन दूरदर्शन मेघालय एवं आकाशवाणी पूर्वोत्तर सेवा शिलांग C/O M.K.TECH, SAMSUNG CAFÉ, BAWRI MANSSION DHANKHETI, SHILLONG – 793001  MEGHALAYA [email protected] 

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