खट्टा-मीठा : भारत क्रिकेट प्रधान देश है
वह जमाना कभी का गुजर गया जब भारत कृषि प्रधान देश हुआ करता था। हमारे देश की अधिकांश परम्पराएँ, मान्यताएँ, त्यौहार आदि फसलों से जुड़ी होती थीं। नाम के लिए आज भी होती हैं, लेकिन वह बात नहीं रही। एक समय देश की सत्तर-अस्सी प्रतिशत जनसंख्या सीधे कृषि पर निर्भर होती थी, परन्तु अब खेती-किसानी दूसरे या तीसरे स्थान पर आ गयी है, क्योंकि लोगों को खाने के लिए अन्न राशन की दुकानों से और आटा मेगा स्टोरों से मिल जाता है।
अब भारत क्रिकेट प्रधान देश बन गया है। देश की नब्बे प्रतिशत आबादी क्रिकेट में रुचि रखती है और स्वयं को क्रिकेट का विशेषज्ञ समझती है। जिनको यह भी पता नहीं होगा कि दुनिया के नक़्शे में न्यूज़ीलैंड कहाँ पर है, वे भी आपको न्यूज़ीलैंड की क्रिकेट टीम का कच्चा चिट्ठा सुना सकते हैं।
क्रिकेट से जली-भुनी किसी विद्वान खोपड़ी ने कभी कहा था कि क्रिकेट एक ऐसा खेल है, जिसे ११ मूर्ख खेलते हैं और लाखों मूर्ख देखते हैं। जिन मूर्खों के पास और कोई काम नहीं है, वे हज़ारों रुपये की टिकट ख़रीदकर मैदान में देखने जाते हैं और जो मैदान में देखने नहीं जा सकते, वे घर में बैठकर टीवी पर देखते हैं। (उन मूर्खों में मैं भी शामिल हूँ। )
क्रिकेट हमारे सामाजिक और पारिवारिक व्यवहार को भी नियंत्रित करने लगा है। जिन बच्चों के पास माँ-बाप के निकट बैठकर दो बातें करने का भी समय नहीं होता, वे उनके साथ घंटों बैठकर टीवी पर क्रिकेट देखते हैं और क्रिकेट पर चर्चा करते हैं। फ़ाइनल-सेमीफाइनल ही नहीं साधारण लीग-मैचों को देखने में भी उनकी पूरी रुचि होती है।
क्रिकेट का मौसम भी होता है। एक समय था जब जाड़े आते ही क्रिकेट के बैट-बॉल बाहर निकल आते थे और बच्चे छुट्टी के दिन या स्कूल से कक्षाएँ बंक करके क्रिकेट खेलने चले जाते थे। परन्तु अब यह बारहमासी मौसम बन गया है। जाड़ों में ही नहीं, घोर गर्मी के दिनों में भी क्रिकेट का बुख़ार अपने चरम पर होता है।
देश में होली-दिवाली कब मनायी जाएगी, अब यह क्रिकेट में देश की हार-जीत से तय होता है। हमारी टीम कोई टूर्नामेंट जीत गयी तो कभी भी दिवाली मना ली जाती है और होली खेल ली जाती है। और यदि हार गयी तो सबके मुँह लटक जाते हैं और रंग-पटाखे रखे रह जाते हैं।
जैसे साल में सर्दी-गर्मी और बरसात के मौसम आते हैं, वैसे ही हर साल क्रिकेट में आईपीएल का मौसम आने लगा है। पूरे डेढ़-दो महीने तक चलनेवाले इस मौसम में अन्य सभी काम स्थगित रहते हैं। घर-घर बस क्रिकेट की ही चर्चा होती है। उसमें हार-जीत पर दाँव लगाये जाते हैं। लाखों लोग तो केवल क्रिकेट पर सट्टा लगाने का धंधा करते हैं। इसीलिए मैं कहता हूँ कि हमारा देश एक क्रिकेट प्रधान देश है।
*— बीजू ब्रजवासी*
फाल्गुन शु. ११, सं. २०८१ वि. (१० मार्च, २०२५)