गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

उन्हें देख अब सँवरने हम लगे हैं।
कदम दर कदम बहकने हम लगे हैं।।

अभी आ रहे देख इंतज़ार हमको।
यहीं अब खड़े तरसने हम लगे हैं।।

सुनो आज ऊँची भरें सब उड़ानें।
गगन को अभी बाँचने हम लगे हैं।

हंस खूब ज़ख़्मी सुनो दिल हमारा
अभी दर्द से निपटने हम लगे हैं।।

बने शत्रु कोई करें क्या बताओ।
इसी बात को जाँचने हम लगे हैं।।

सभी ही हुनरमंद होते नहीं हैं।
बुराई अभी ढ़ूँढ़ने हम लगे हैं।।

हसरतें उठाती रहीं सिर अभी तक।
सुनो आज पर कतरने हम लगे हैं।।

चले प्रेम ढूँढ़ें गली से गली तक।
शहर – दर – शहर भटकने हम लगे हैं।।

चढ़े चोटियों पर सफल ही हुये हैं।
सभी को अभी खटकने हम लगे हैं।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’

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