फ़िल्म “शोले” के संग “होली” के रंग
आज बसंती से ज़ब होली खेलने आया वीरू,
मौसी बोली तू दारू छोड़कर पी आया जीरू।
मौसी ने कहा मैं शादी के लिए अभी तैयार हूँ,
रामू काका बोले मैं तो अभी तक “बेकरार” हूँ।
ये गब्बर पूछ रहा था बार-बार कब है “होली”,
सांभा बोला कैलेंडर देख लिया कर हमजोली।
टंकी पे चढ़ गया हैं ये वीरू, रंग लगा दे बसंती,
ऐ मैं शादी नहीं करूंगी, तू मत कर ज़बरदस्ती।
अंग्रेजो के “ज़माने” के जेलर ने खेली “होली”,
हरिराम नाई जूते बेच लाया “भाँग” की गोली।
गब्बर बोला हमसे-ये हाथ हमको दे दे ठाकुर,
अपने हाथों से होली खेल के दिखा नामाकूल।
अरि ओ…छमिया हमको रंग नहीं लगाओगी,
तेरे दांत कपड़े धोने के ब्रश से साफ़ कराऊंगी।
चल-चल धन्नो आज तेरी इज्जत का सवाल हैं,
बताओं मेरे ऊपर नहीं कोई फेंकता ग़ुलाल है।
राधा मैं तुम्हारे गालों पर रंग लगाना चाहता हूँ,
जय, पहले ठाकुरजी से परमिशन लें आती हूँ।
सूरमा भोपाली से दिनभर दस झूठ बुलवाते हो,
होली में एक रूपये का भी रंग नहीं लगाते हो।
— संजय एम तराणेकर