लघुकथा

रंगदार होली

रमेश से शादी के बाद पहली बार शहर आई नीलम आज बहुत खुश थी-
“अरे नई-नवेली बहू है, होली नहीं मनाएगी क्या? यहां तेरी मां या सास तो है नहीं, सो मैं ही अपनी बहू-बेटी के लिए होली का सामान लेने गई थी, तेरे लिए भी ले आई. तेरे और रमेश के लिए कपड़े हैं, रंग-गुलाल और मुंहं मीठा करने को थोड़ी-सी गुझिया भी हैं.” जिस घर में नीलम पार्ट टाइम मेड का काम करती थी उसकी मालकिन ने उसे बहुत बड़ा सुंदर-सा पैकेट पकड़ाते हुए कहा था.
भावाभिभूत नीलम बड़ी मुश्किल से “थैंक्यू मेमसाहब” ही कह पाई!
अब तो वह भी रमेश के साथ “आज बिरज में होरी रे रसिया.” और “रंग बरसे…” गाकर धूमधाम से होली मना सकेगी!
“होली के दिन दिल खिल जाते हैं…” खुशी से वह गुनगुना रही थी.
उसकी पहली होली ही इतनी रंगदार होगी, उसने कभी सोचा भी नहीं था!

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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