रंगदार होली
रमेश से शादी के बाद पहली बार शहर आई नीलम आज बहुत खुश थी-
“अरे नई-नवेली बहू है, होली नहीं मनाएगी क्या? यहां तेरी मां या सास तो है नहीं, सो मैं ही अपनी बहू-बेटी के लिए होली का सामान लेने गई थी, तेरे लिए भी ले आई. तेरे और रमेश के लिए कपड़े हैं, रंग-गुलाल और मुंहं मीठा करने को थोड़ी-सी गुझिया भी हैं.” जिस घर में नीलम पार्ट टाइम मेड का काम करती थी उसकी मालकिन ने उसे बहुत बड़ा सुंदर-सा पैकेट पकड़ाते हुए कहा था.
भावाभिभूत नीलम बड़ी मुश्किल से “थैंक्यू मेमसाहब” ही कह पाई!
अब तो वह भी रमेश के साथ “आज बिरज में होरी रे रसिया.” और “रंग बरसे…” गाकर धूमधाम से होली मना सकेगी!
“होली के दिन दिल खिल जाते हैं…” खुशी से वह गुनगुना रही थी.
उसकी पहली होली ही इतनी रंगदार होगी, उसने कभी सोचा भी नहीं था!
— लीला तिवानी