ऐसी होली!
होली का त्योहार फिर आने वाला था. अंजु को रह-रहकर पिछले साल की भयंकर होली याद आ रही थी. कितनी खुश थी अंजु मनीष के साथ होली खेलकर. मनीष उसके चेहरे पर रंग मल रहा था और वह खुशी के मारे निहाल हो रही थी.
“मेरी खुशी चंद पलों की थी!” रंग छुड़ाने की कोशिश में अंजु चेहरे की खुजली के कारण बेहाल हो रही थी.
“डॉक्टर साहब, मैं चेहरा खुजा-खुजाकर परेशान हो गई हूँ और सांस लेने में भी दिक्कत हो रही है.” परेशान अंजु के पास डॉक्टर के पास जाने के सिवाय कोई चारा नहीं था.
“कब से ऐसा हो रहा है?”
“होली पर मेरे दोस्त ने रंग लगाया था, तब से.”
“तब तो रंग में पड़े खतरनाक रासायनिक का ही यह दुष्प्रभाव है!”
“कोई इलाज?”
“चेहरे की खुजली के लिए तो मैं एक मरहम दे दूंगा, बाकी रंग में एसिड की गंध के कारण हुए अस्थमा के लिए तो आपको आजीवन इन्हेलर पर आश्रित रहना होगा!”
डॉक्टर साहब की चेतावनी से चित्त हुई अंजु के समक्ष मुखौटे की पोल खुल गई थी, उसने हमेशा के लिए दोस्त के मुखौटे में दुश्मन मनीष को ब्लॉक कर दिया था!
“किसी दुश्मन के साथ भी न खेली जाए ऐसी होली!” अंजु की व्यथा मुखर थी.
— लीला तिवानी