ग़ज़ल
याद देखो बेवजह हमको न आया कीजिये ।
ख़्वाब में आकर न यूँ हमको रुलाया कीजिये।।
दर्द कहते आज अपना हम तुम्हें सुन लो अभी।
ग़म भरी ऐसी घड़ी में ही हँसाया कीजिये।।
ज़ख्म बनते ही गये नासूर जो की है ख़ता।
तीर ऐसे ही कभी देखो मत चलाया कीजिये।।
सोच बर्बादी लगी होने यहीँ पर ही अभी।
देखकर ऐसी घड़ी मत तमतमाते कीजिये।।
काम करते हैं सभी अपने लिए देखो सभी।
दूसरों के भी कभी तो काम आया कीजिये ।।
राह चलते ठोकरें लगती रहें जो भी सुनो।
कष्ट सहते ही हुये तब मुस्कुराया कीजिये।।
जो मिले अच्छा मिले चल नेक राहों पर सदा।
लक्ष्य साधे ही क़दम उन पर बढ़ाया कीजिये।।
बुज़ुर्गों की ही सलाहों पर चलें मिलती दुआ।
शीश क़दमों में उन्हीं के ही झुकाया कीजिये।।
अब ज़रूरत जो पड़े बातें करो तब देश की।
जान सुरक्षा में वतन की ही लुटाया कीजिये।।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’