कविता

कविता

अब त्योहारों के बाद के
हिसाब-किताब में
खर्चे अधिक और
रिश्ते कम आते है ।

जितना भी दिखा लो….
मुस्कुराहटें उतनी ही होती हैं
जितनी तस्वीरों में नजर आती है
अब उत्साह से ज्यादे अकेलापन
हावी रहता है।

अब तो फोन भी कम आते जाते हैं क्योंकि
फार्वर्ड मैसेज और इमोजी का जो जमाना है।
समय खूब बच जाता है ।

— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)

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