सीखने की ललक जगाओ
अपने अंदर भी सीखने की ललक जगाओ,
दिमाग में समुंदरसी गहराईयॉ लिए आओ।
कौन कब क्या? सीख लें हमें न समझाओ,
कब कौन क्या? हमसे मांग लें न बतलाओ।
कई बार गुरुओं ने भी सिखाने से मना किया,
शिक्षा और कला को पैसों से ही तोल दिया।
अपने अंदर भी सीखने की ललक जगाओ,
दिमाग में समुंदरसी गहराईयॉ लिए आओ।
यहॉ तो पत्थर से भी एकलव्य सीख लेते है,
द्रोणाचार्य ट्यूशन फीस में अंगूठा ले लेते है।
मुझे इस कलयुग में तो लगता रहता ये डर,
आँचल फैलाकर मुझसे न मांग ले मेरा घर।
अपने अंदर भी सीखने की ललक जगाओ,
दिमाग में समुंदरसी गहराईयॉ लिए आओ।
नायकों इस युग में हाथ-पैर बचाएं रखना,
ये समाज थोड़ी देर भी लेगा नहीं जख्खना।
अपने माता-पिता से ये कहना न रखें वे व्रत,
उनका पुत्र इस वर्तमान में न बनेगा देवव्रत।
— संजय एम तराणेकर