कुंडलिया
कुछ आगे की सोचिये,बीती बातें भूल |
नहीं चुभेंगे शूल फिर, राह खिलेंगे फूल ||
राह खिलेंगे फूल, प्रफुल्लित तन-मन होगा |
मुट्ठी में तक़दीर,सफल यह जीवन होगा ||
कहे “मृदुल” मन आज,बात यह लाख टके की |
नहीं लीक पर चलें,सोंचिए कुछ आगे की
संकट टल जाएं सभी, यदि मिट जाए स्वार्थ |
कुछ आगे की सोचिए कुछ करिए परमार्थ ||
कुछ करिए परमार्थ,यही मानव आभूषण |
मिटे शत्रुता भाव,कामना हो तब पूरण ||
“मृदुल” मनुजता धारे,तब होगा जग निर्मल |
प्रेम और सौहार्द बढ़े जाए संकट टल ||
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”