कविता

भ्रम

न रहिये भ्रम में कि
कोई चोर,लुटेरा या डाकू
आपके लिए एक नया सवेरा लाएगा,
तुम्हें बातों में उलझाकर
तुम्हारा सब कुछ पुनः ले जाएगा,
कई महापुरुष कहते कहते थक गए
कि अपना दीपक खुद बनो,
इंसान पूरे शुद्ध बन राह अपनी खुद चुनो,
जातियों और धर्मों से भरे संसार में
सब एक दूसरे से नफरत वाले हैं,
जब,जहां,जिसको मिला मौका
खुलकर अपनी खुन्नस निकालें हैं,
मतलब नहीं किसी को किसी के
आंतरिक भावनाओं की,
पुरूष धज्जियां उड़ा देता है
माता,पत्नी व पुत्री के कामनाओं की,
निकलना होगा भ्रम से महिलाओं को,
स्वयं लड़ना होगा और दूर करना होगा
आ धमकते बलाओं को,
मन को करना ही होगा इतना मजबूत
कि पास बिल्कुल न फटके भ्रम,
चलना होगा अपनी राह
अपनी जरूरतों को देते हुए क्रम,
तोड़ो मानसिक गुलामी जो एक षड़यंत्र है,
खुद ही खोजो उसे जो आगे बढ़ने का मंत्र है।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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