गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कुछ तिरा दर्द भी सताता है
कुछ ज़माना भी क़हर ढाता है

इक तसव्वुर तेरा, है दुश्मन-सा
जो मुझे रात भर जगाता है

तर्क तूने तअल्लुक़ात किए
फिर मुझे किसलिए बुलाता है

ये बता क्या इसी में ख़ुश है तू
दिल को मेरे जो यूँ दुखाता है

एक ख़ुशबू-सी छाने लगती है
जब तू मेरे क़रीब आता है

दिल तो दुश्मन था मेरा पहले से
वक़्त भी मुझपे जुल्म ढाता है

मैंने दुनिया लुटा दी तेरे लिए
और तू मुझको आज़माता है

आज ‘पूनम’ की रात है शायद
तू ग़ज़ल कोई गुनगुनाता है

— डॉ. पूनम माटिया

डॉ. पूनम माटिया

डॉ. पूनम माटिया दिलशाद गार्डन , दिल्ली https://www.facebook.com/poonam.matia [email protected]

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