कविता

गिनते रहिये दिन

जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आता है
जब कुछ कुछ खालीपन महसूस होता है,
दिल गुजरे जमाने को याद कर रोता है,
जो सिर्फ यादों में ही रहेगा,
दुबारा आ जाऊं वक्त नहीं कहेगा,
इधर समय गुजरता जाएगा,
आयु साल दर साल घट जाएगा,
कम होता जाता है दबदबा,
कोई बचता नहीं मुंहलगा,
आपको आपसे ही कोई नहीं मिलायेगा,
गुजरा पल पल पल तड़पायेगा,
रहने लगेंगे सिर्फ यादों के सहारे,
एक छोर में खुद तो
दूसरे छोर में बाकी सारे,
समझना न समझना खुद के ऊपर होगा
क्योंकि बतियाएंगे रोज नदी के धारे,
यदि किया है कुछ ऐसा काम,
जो रख दे बरसों तक नाम,
तो सफल रहेगा किसी का भी जीना,
कब भागना पड़े सब छोड़
तब तक गिनते रहिये दिन,साल,महीना।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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