अल्हड़ रमणी
चारुलता चञ्चल चितवन
कजरारे से कमल नयन
काले केश घुँघराले
रमणी धारती पित वसन।
किंकिनी बजती छन छनन
इठलाती चले नूपुर पहन
हो जाते सब मतवारे
कटि पर बलखाते करघन।
अधर दहकते से गूलर
पवन उड़ाते हैं चूनर
मदमस्त हो जाते सभी
जीना हो सबका दूभर।
सुनयना पर सब फिसल गये,
देख कामिनी मचल गये
वो बिलकुल भोली भाली
वो बिलकुल अल्हड़ निश्चल।
— सविता सिंह मीरा