गीतिका/ग़ज़ल

ज़िन्दगी में

कोई अब क्या मिलेगा ज़िन्दगी में
कहां तुझ-सा मिलेगा ज़िन्दगी में
तुम्हें ही ढूंढता रहता हूं अक्सर
कोई तुम – सा मिलेगा ज़िन्दगी में
वो सपने भरभरा कर रह गए हैं
महज़ मलबा मिलेगा ज़िन्दगी में
बिना पूछे ही सब कुछ जान जाना
कहां ऐसा मिलेगा ज़िन्दगी में
भरी महफ़िल में वह रुसवा करेगा
यही तोहफ़ा मिलेगा ज़िन्दगी में
दरख्तों को अभी भी डर यही है
लकड़हारा मिलेगा ज़िन्दगी में
अभी से ही न थक कर हार जाना
बहुत सहरा मिलेगा ज़िन्दगी में
ये जंगल उजड़ जाएंगे किसी दिन
तो सन्नाटा मिलेगा ज़िन्दगी में

— ओम निश्चल

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