कविता

ये कलम वाले

ये कलम वाले
दो धारी तलवार लिए फिरते हैं,
शरीर तो शरीर
अंतस पर वार किये फिरते हैं,
इनका नजरिया
नजरानों के अनुसार होता है,
पराए दुखी तो खुश
और अपने दुखी तो जार जार रोता है,
समाज से प्रताड़ित को
प्रताड़ित करना अपना धर्म समझते हैं,
समाज के प्रतिष्ठित की
चापलूसी करना परम कर्म समझते हैं,
कोई वंचित गुनाह करे तो
उनकी जाति बता हर पल चिल्लायेंगे,
कोई इनके लोग गुनाह करे तो
उन्हें दबंग या बाहुबली बताएंगे,
किसी अन्य धर्म वाले की गलती पर
आतंकवाद वाला एंगल निकालेंगे,
अपनों के देशद्रोह पर भी
सामान्य घटना बता पर्दा डालेंगे,
किसी गैर जरूरी बातों पर
दिन भर ध्यान भटका भौंकते जाएंगे,
जनता जो जानने चाहिए
उन मुद्दों को बिल्कुल ही नहीं बताएंगे,
कुछ खतरनाक किस्म के
बढ़िया पत्तलकार दिखे हैं,
आम चूसते हैं या काट खाते हैं
जैसे शानदार प्रश्न इनसे हम सीखे हैं,
अब आप ही बताइए
समाज और देश से
इनको कितना चाहत या सरोकार है,
मेरी नजर में तो ये
असामाजिक,लालची पत्तलकार है।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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