सूर्य की तरह
यही स्वाभाव है,
समर्पित मन का संकल्प है,
हिमालय की परिकल्पना में,
सहृदय सद्भाव है।
नश्वर शरीर में मौजूद,
उम्मीद की किरण है।
नवीन चेतना को जागृत कर,
बनता सुकून का,
सबसे खूबसूरत स्मरण है।
यही एक सपना है,
न उगने का अभिमान है।
बहुत सुंदर प्रयास है,
यही उन्नत स्वाभिमान है।
निश्चित रूप से डूबने का नहीं डर है,
हमेशा समर्पित मन को,
इसकी इसी वजह से ही,
मिल जाता शब्दों से सराबोर,
कहलाता शख्सियत निडर है।
यही जिंदगी है,
यही उल्लास से मनाया गया त्योहार है।
क्षण भर में ही,
सब मानते हैं,
जिंदगी भर में,
सुकून देने वाली ताकत बनकर,
बन जाता उपहार है।
— डॉ. अशोक, पटना