दीपावली का उपहार
मम्मी-पापा के साथ दिवाली की खरीदारी करके हाथ में कुछ पैकेट लिये परी घर लौटी।
परी ने चार-पाँच पैकेट एक-एक करके खोला और नानी को खुशी-खुशी दिखाने लगी।
“नानी! यह देखो पेंटिंग-सेट और पिक्चर बुक। अच्छी है न?”
“मेरी परी बहुत अच्छी चित्रकार है। अभ्यास करेगी तो और अच्छा चित्र बनायेगी।”
“जी नानी
आपका भी स्कैच बनाऊँगी।” लाड़-दुलार और बातचीत का सिलसिला जारी रहा। नानी ने खरीदारी का समान – ड्रेस, मैंचिग हेयर बैंड, जूते सब देख लिया। उन्होंने कहा,”चलो, कुछ खा लो। परी, भूख लगी है न?”
“जी नानी! अभी खाती हूँ। आपने तो पूछा ही नहीं कि मैंने आपके लिये क्या खरीदा है।”
“तो जल्दी से दिखा मेरी परी मेरे लिए क्या लायी है?”
“नानी! यह देखिये मैं आपके लिए दिवाली का उपहार लायी हूँ,” यह कहते हुए परी ने लाल रैपर में लिपटा हुआ उपहार नानी को दिया और खुद नानी के गले से लिपट गयी।
“खोलकर देखिये कैसा है?”
” सुन्दर सा गुल्लक, वह भी मिट्टी का!”
हँसते हुए परी बोली, ” नानी, आपके पास गुल्लक नहीं है इसलिए लायी हूँ। आपको पसंद आया?”
“बहुत सुन्दर है मेरी लाड़ो! गुल्लक तो ले आयी पर मुझे इसमें डालने के लिए पैसे कौन देगा,” नानी ने पूछा।
“मैं दूँगी। नानी, मैं अपने गुल्लक से कुछ पैसे निकाल कर आपको दे दिया करूँगी। ठीक है न?”
“ओह! मैं तो बिना पैसे के धनवान हो गयी बिटिया।”
मासूम परी को कुछ समझ में नहीं आया। वह बोली, “मेरी प्यारी नानी!”
— डाॅ अनीता पंडा ‘अन्वी’