अनुशासन समाहितम्
किताब ने कलम की तरलता को कहा
तुम अपनी सीमा में अनुशासित रहना
कभी हवाओं का रूख बदल जाए तो
मेरे पन्नों की लकीरों को तुम समझना
अंगुलियों की पनाह में कैद तुम्हारा प्रेम
जब मेरी स्वेत धमनियों में प्रवेश करेगा
मेघों की गर्जती गुफ्तगू हिल जाए तो
तुम्हारी बहती तरंगों का आभास होगा
ऋतुओं का वर्णन जब तुम करोगी
मेरे हर एक द्वार पर दस्तक दोगी
सावन कभी उफ़ान भर आये तो
तुम मेरे आंचल में छुप जाओगी
यह प्रणय निवेदन मेरी रेखाओं में
मणियों की तरह सुशोभित रहेगा
कभी पतझड़ की आहट आये तो
तुम्हारी शीतलता से अंकुर फूटेगा।।
— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ “सहजा”