मेरे बस की बात नही
मेरा सारा जीवन कटता है तो कट जाए
बेरोजगारी में
दरिद्रता में
संघर्ष में
पर गुलामी करना मेरे बस की बात नहीं
जिसको करना हो करे चाटुकारिता
खिदमत,
सलामी,
अभिनंदन और
हाँ में हाँ मिलाना मेरे बस की बात नहीं।
जिसको लगाना हो,तस्वीर चौंक-चौराहे में
फूलों की माला
तालियों की गूँज
ऊँची कुर्सी
लाल बत्ती
वही दुम हिलाये
लेकिन आगे-पीछे घूमना,मेरे बस की नही।
जिसको पाना हो ठौर-ठौर में मान-सम्मान
यश
ख्याति
पहचान
वही बने चारण-भाट….
किंतु चापलूसी करना मेरे बस की बात नही।।
— चन्द्रकांत खुंटे ‘क्रांति’