मुझे यमलोक ले चल
आज रात मेरे मन में विचार आया
क्यों न यमराज को बुलाया जाये,
एक प्रस्ताव सुझाया जाये।
उसके समझ में आ जाये
इस तरह समझाया जाये।
मैंने यमराज को फोन लगाया
हाल-चाल के बाद अपने पास बुलाया,
यमराज हड़बड़ाया, बहुत घबराया
प्रभु! आज पहली बार आप मुझे अपने आप बुला रहे हो
कहीं ठर्रा तो नहीं पी लिए हो,
जो इतनी रात गए घर बुला रहे हो,
या कोई साजिश रच रहे हो
और भौजाई से मेरे हाथ-पैर
तुड़वाने का पक्का इंतजाम कर रहे हो।
नहीं यार! मैं तेरे लिए ऐसा सोच भी कैसे कर सकता हूँ?
तेरे चक्कर में मैं भला
अपनी बीबी से पिटने का इंतजाम
खुद क्यों और कैसे कर सकता हूँ?
वैसे तुम्हें बुलाने का एक विशेष कारण है।
मेरे मन में एक विचार आया है
जिसे आमने-सामने बैठकर तुझसे कहना चाहता हूँ,
बस यार! अब तुम अभी आ जाओ
नाहक समय व्यर्थ न गवाँओ,
भोर हो गई तो सब व्यर्थ हो जायेगा,
मेरे विचार गुम होने का खतरा बढ़ जायेगा,
नया इतिहास रचने से हम दोनों का नाम
बहुत पीछे चला जाएगा।
बड़ी शराफत से यार यमराज आ गये
चुपचाप मेरे बगलगीर हो गये,
धीरे से मेरे कान में फुसफुसाये,
कहो लंबरदार! काहे हमें बुलाए?
मैंने उसके सिर पर हाथ फेरा, दुलराकर बताया
यार! अब तू मुझे अपने साथ यमलोक ले चल भाया।
धरती लोक से तेरे यार का जी बहुत ऊब गया है
यमलोकी जीवन का लोभ जग गया है।
यमराज भड़ककर खड़ा हो गया
ये तुझे क्या खुराफात सूझ गया,
तू मेरा मित्र हैं, इसलिए इतना सह गया।
वरना अनर्थ हो जाता
धरती लोक से अब-तक तेरा हर रिश्ता टूट जाता,
भोर के साथ तू इतिहास हो जाता।
फिर लंबी साँस लेकर शाँति से ज्ञान बाँटने लगा
प्रभु! यदि मैं आपकी बात मान भी लूँ
तो क्या सब हल हो जायेगा?
आपका विचार भला फल जाएगा?
आपको इतना भी ज्ञान नहीं कि ऐसा होते ही
धरती लोक की तो छोड़िए
यमलोक में भी हड़कंप मच जाएगा।
भोलेनाथ का क्रोध मुझ पर गिर जाएगा
चित्रगुप्त जी का सारा हिसाब किताब बिगड़ जायेगा
धरती आकाश,,-पाताल में उथल-पुथल मच जाएगा।
मैंने समझाया – मेरे यार तू शाँत हो जा
ऐसा कुछ बिल्कुल भी नहीं होगा।
मैं वहाँ पहुँचकर भोलेनाथ से अनुमति ले लूँगा
चित्रगुप्त जी से अपने पाप- पुण्य का लेखा-जोखा
हाथ जोड़ कर आनलाइन करवा लूँगा,
बस! तू राजी भर हो जा
बाकी सब कुछ मैं संभाल लूँगा।
यमराज हाथ जोड़कर बोला –
यार तू मुझे माफ़ कर- मुझसे न हो पायेगा
दोस्त होकर यह पाप तू मुझसे ही करायेगा?
और सबसे बड़ी बात तो यह है
कि फिर धरती लोक पर चाय पीने
और मन की भड़ास निकालने मैं कहाँ आऊँगा?
तू मेरा यार है, गर्व से कैसे कह पाऊँगा?
जीते जी क्या मैं मर नहीं जाऊँगा?
इतना कहकर वह अपनी रौ में आ गया –
बस बहुत सुन चुका मैं तेरी बक-बक
अब चुपचाप घोड़े बेचकर सो जा,
वरना भाभी जी को अभी जगाकर तेरी करतूत बताऊँगा
और धीरे से वापस निकल जाऊँगा,
तब तू बहुत पछतायेगा
मगर मैं तेरे हाथ बिल्कुल नहीं आऊँगा।
फिर हँसते हुए कहने लगा
आखिर तू मेरा यार है ! क्या तुझे ऐसे ही ले जाऊँगा ?
तुझे धूम-धड़ाके, गाजे-बाजे संग
धरती से यमलोक तक लंबे काफिले में ले जाऊँगा,
फिलहाल तो मैं चला –
तेरी वजह से बेवजह यहाँ-वहाँ असमय ही
मैं किसी की डाँट तो बिल्कुल नहीं खाऊँगा।
सुधीर श्रीवास्तव