मुक्तक
इश्क़ में जातियों को, देखता अब कौन है,
योग्यता या रंग रूप, इश्क़ में सब गौण है।
एक धर्म जिहाद का, एक अर्थ प्रधान बना,
अहंकार प्रमुख जहाँ, मौत पर सब मौन हैं।
क्या कहें किससे कहें, सुनता अब कोई नही,
सार क्या संस्कृति का, गुनता अब कोई नही।
स्वार्थ में लिप्त सब ही, निःस्वार्थ दिखता नही,
संस्कारवान साथी मिले, चुनता अब कोई नही।
अर्थ की प्रधानता, योग्यता आधार बनने लगी,
आधुनिक जीवन शैली, अब आधार बनने लगी।
उन्मुक्त जीवन जीने की चाह, भटक रहे सब यहाँ,
धर्म की राह तज, विलासिता आधार बनने लगी।
— डॉ. अ. कीर्तिवर्द्धन