कविता

निर्मल भाव

आज निर्मल भाव रहता कहां है,
कोई किसी को सहता कहां है,
कथे और कहानियों में
अब तो ये समाए है,
बड़ी ही मशक्कत से
लेखनी में इसे लाए हैं,
निर्मल भाव खोजना है तो
बच्चों के बीच जाओ,
मन के कोमलता की
दर्शन साक्षात पाओ,
अपने हृदय की बातों को
नाजुकता से बताएगा,
बड़ों की तरह नहीं
मसाला मिर्च लगाएगा,
ज्ञानी बाबा पीर फकीर,
अधर कठोरता धरते हैं,
क्षणभंगुर ये जीवन कह
जेब मोटी भरते हैं,
छोड़ दो सब उसके ऊपर
ऐसा ये गोहराते हैं,
बुलेटप्रूफ कारों संग
अंगरक्षक लहराते हैं,
मीठी जुबानें तो आज
खोजे न मिलती है,
कोमलता वाली भाव तो
निःस्वार्थ मन में पलती है।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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