माँ का आंचल
पूरे घर में माँ का बोलबाला है।
मां का दिल बिल्कुल निराला है।
नाराज़ होती है पर कुछ कहती नही।
बगैर बच्चों के माँ रहती नही।
पल प्रतिपल बच्चों को निहारती है वो।
नज़र न लग जाए यही सोचती विचारती है वो।
छुपा कर रखे वो आंचल में अपनी औलाद को।
औलाद खातिर लड़ पड़े चाहे वो फौलाद हो।
कैसे वर्णित करूं माँ की परिभाषा।
आजतक बनी नही ऐसी कोई भाषा।
रूप निराला है रंग भी है निराला।
औलाद को बड़े प्यार से है पाला।
माँ के लिए कितना लिखूं कम है।
कुछ लिख न पाऊं इसका गम है।
माँ मेरे ख्वाबों में रोज आया करो।
तकिया बना बाहों में सुलाया करो।
— प्रीति