हे परशुराम, धर्म का दीप जलाओ
जय जय परशुराम प्रभु, धरम के दीप जलाओ,
अन्याय के घोर अंधेरे में, फिर से ज्योति जगाओ।।
कण-कण में करुण पुकार सुनाई,
धरा पे फैली पीड़ा गहराई।
अत्याचार की आग भड़की,
मर्यादा की लाज झुलसी।
हे वीर परशुराम, अब आओ,
धरती पर फिर धर्म जगाओ।।
जय जय परशुराम प्रभु, धरम के दीप जलाओ,
अन्याय के घोर अंधेरे में, फिर से ज्योति जगाओ।।
कलियुग की काली रात में,
सच की दीप शिखा बुझ जाती।
पग-पग पर छल, पग-पग पर घात,
मनुजता रोज-रोज लजाती।
पुराणा धरम निभाने को,
हे परशुधारी, फिर लौट आओ।।
जय जय परशुराम प्रभु, धरम के दीप जलाओ,
अन्याय के घोर अंधेरे में, फिर से ज्योति जगाओ।।
कण-कण में अन्याय गरजता,
हर गली में अपराध बरसता।
सच्चाई दम तोड़ रही,
न्याय चुप्पी ओढ़ रही।
अत्याचारों का जड़ से नाश करो,
फरसे की धार फिर चमकाओ।।
जय जय परशुराम प्रभु, धरम के दीप जलाओ,
अन्याय के घोर अंधेरे में, फिर से ज्योति जगाओ।।
हे परशुराम, फरसे की धार बढ़ाओ,
धरम अर इंसानियत का फिर से राग सुनाओ।
भूले पथिकों को राह दिखाओ,
कलुषित मनों में भक्ति जगाओ।।
जय जय परशुराम प्रभु, धरम के दीप जलाओ,
अन्याय के घोर अंधेरे में, फिर से ज्योति जगाओ।।
— डॉ. सत्यवान सौरभ