गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मौसमे – बहारां में हम मोम – से पिघल जाएँगे
बनी जो दूरी बता उसे कैसे मिटा पायेंगे

मरने से पहले मुझे ले ले अपनी आगोश में
सोचेंगे प्यार किया था कभी चैन पा जाएँगे

मेरे आँसू तो करते हैं ताक़ीद तुझसे यही
छोड़ अभी ग़ैर की बाहें होश में आ जाएँगे

भूला क्यों तू ये रास्ता बता अपने ही घर का
तूने सोचा पगडंडी से मंज़िल पा जाएँगे

क्या मिल गया है सुकूं ग़ैर के ही ख़्यालों से तुझे
तू सुन ले बात अभी बद् दुआ हम दिए जाएँगे

सैंतालीस बर्षों का साथ भुलाएँ कैसे सुनो
ज़ुल्म तेरे रहे सहते अभी भी सहे जाएँगे

ज़ुल्म सबसे बड़ा किया ग़ैर के लग गले सामने
साल भर रूह पर चुभोए नश्तर सहे जाएँगे

कद्र की न तूने मेरे समर्पण की सोच तो कभी
दर्द का ही इकराम हम झोली में ले जाएँगे

तेरी बेवफ़ाई का दर्द दिल बना पर बोझ है
यूँ ही बढ़तीं ये दूरियाँ भी हम सहे जाएँगे

चैन तुझको मिलेगा यह तू सुन ले कभी भी नहीं
तड़पेगा , तरसे अरबों गुना ये कहे जाएँगे

इन बहते आँसुओं को तू बता रोकूँ मैं कैसे
डूबे दर्द के समंदर में डूब और जाएँगे

बिछड़ोगे जब , तो आँसू बहेगे कैसे बता दे
तेरे मरने की ग़ैर को ख़बर न बता पाएँगे

तूने छलनी किया हर पल हर कदम पर ही मुझको
यही सोच – सोच आँसू हम बहाते ही जाएँगे

तेरे मेरे रास्ते हो गये हैं अलग – अलग अब
तू किस रास्ते , हम किस रास्ते पर चले जाएँगे

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’

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