ग़ज़ल
अब दर्द ही दिखाना, आँसू हमें बहाना।
आगे क़दम बढ़ाना, पीछे न पग हटाना।।
जो हैं गुनाह करते, कर ख़त्म दें उन्हें भी।
जो है कहा अभी ही, अब पूर्ण कर दिखाना।।
सुन आज लो जवानो, अब.घाट ही उतारें।
वादा किया अभी है, उसको हमें निभाना।।
दम खूब बाजुओं में, अब रेत दें गला ही।
वे जानते नहीं क्या, ताक़त उन्हें दिखाना।।
आतंक आज फैला, मन देख है न मैला।
अब ख़ून ही उन्हीं का, हमको अभी बहाना।
निर्दोष आज मारे, आया तरस नहीं था।
छीनो ज़मीं उन्हीं की, सब ख़ाक में मिलाना।।
इंसानियत न जाने, सिर मौत आज खेले।
वह धर्म पूछता है, था कर्म ही न जाना।
इस देश को न जाने, जो पंचशील माने।
संकट पड़े तभी ही, आता उसे हराना।।
सिंदूर पत्नियों का, दुश्मन वहीं उजाड़े।
ख़्वाहिश अभी यही है, उनको वहीं गड़ाना।
यह पाक क़ातिलों का, नासूर बन गया है।
क़ब्र आज बन गयी है, उनका वहीं ठिकाना।।
अब आह ही किसी की, खाली नहीं न जाती।
बेदर्द हो उन्हें भी, फाँसी उन्हें चढ़ाना।।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’