गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आज उसी ने खुद को तगड़ा कर लिया।
काटते ही फ़सलें लो भँगड़ा कर लिया।।

वो समझता देख सबको कुछ नही।
आज तो खुद को खुदाया चर लिया।।

साथ उसको तब नहीं जो दे सके।
देख उसी ने आज झगड़ा कर लिया।।

बंदगी हम कर रहे हैं सोच लो।
बंद अपना आज द्वारा कर लिया।।

जब बनाया बेहतर उसको तभी।
अब उसी ने ही किनारा कर लिया।।

हम मिले थे जब कहीं भी अब तलक।
खुशनुमा ही देख चेहरा कर लिया।।

तब लगाये वृक्ष ये बढ़ते गये।
धूप में हमने गुज़ारा कर लिया।।

जब बुलाया तब वही आया नहीं।
( झूठ पर उसके भरोसा कर लिया।। )

देख दुनिया में नहीं कोई सगा।
यही कह सबको पराया कर लिया।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’

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