पहलगाम हमला, आखिर कब तक? भावभीनी श्रद्धांजलि
आज हम आतंक के साए में जी रहे हैं
सच पूछो तो पल-पल
आतंक का विष ही पी रहे हैं.
सचमुच फिर एक बार फिर आतंक का कालकूट विष पीना पड़ा है. सबसे पहले उन साहसी सनातनी वीरों को शत शत नमन, जिन्होंने सामने मौत देखकर भी गर्व से कहा हम हिन्दू हैं. भले ही उन्होंने आतंकियों की गोली खाई, पर हम हिन्दुस्तानियों के दिल में अमर (शहीद) हो गए.
पहलगाम में हुआ हालिया आतंकी हमला, जिसमें कई निर्दोष लोगों की जान चली गयी, एक ऐसा प्रश्न खड़ा करता है, जो हर भारतीय के मन में गूँज रहा है कि आखिर कब तक? कब तक हम इस तरह की बर्बरता सहते रहेंगे? कब तक हमारे देश के नागरिक,चाहे वे पर्यटक हों, चाहे स्थानीय नागरिक, या फिर हमारी सेना के जवान, आतंकवादियों के आसान शिकार बनते रहेंगे.
हर बार उनका नया तरीका होता है. इस बार तो बर्बरता की हद ही हो गई-
और अब #नाम पूछकर हत्या करने का आतंक!
सचमुच इस तरह के आतंक ने हर भारतीय के मन को आक्रोषित कर दिया है-
होती रही अन्तर्मन में उथल-पुथल,
पर सागर चुपचाप लहरों का उत्पात देखते रहे।
IDENTIFY TRACK PUNISH AND FINISH
मोदी जी के इन चार शब्दों में बहुत कुछ छिपा है
आतंकियों और जयचंदों को ये इशारा काफी है
सरकार इस मामले में संज्ञान ले रही है और कड़े कदम उठा रही है, पर हम आम जनों को भी सचेत रहना होगा.
पहलगाम (कश्मीर) में शहीद हुए निर्दोष पर्यटकों को समर्पित दो शब्द-
पीछे मुड़कर क्यों देखना, जब हमारी बाजुओं में दम है,
दुश्मन सेर है तो क्या हुआ, हम सवा सेर क्या शेर से कम हैं!
— लीला तिवानी