धरती मां की खिली मुस्कान!
“बोतल के ठंडे पानी से तुम्हारी तपन तो कुछ हद तक शांत हो गई, पर मेरी भयंकर तपन का क्या होगा?” तपन को गर्मी की तपन से अस्थायी निजात पाते देख धरती मां की व्यथा मुखर हो गई.
“तुम तो धरती मां हो, धैर्य की देवी हो, असीमित धीरज धारण कर सकती हो!”
“यही तो तुम लोगों की चालाकी है, धैर्य की देवी कहकर मुझे भी भ्रमित कर रहे हो और खुद भी भ्रमित हो रहे हो. तुम न तो मेरे असीमित धैर्य का आकलन कर सकते हो और न ही मेरी तपन को कम करने के उपाय कर रहे हो. मेरे भी अधर सूखते हैं, मेरी भी आंखें जलती हैं!”
“सच कह रही हो धरती मां,
हम ही वृक्षों को काटते, सताते तुझे धरा,
फिर भी तेरी गोद में ही हम कर पाते क्रीड़ा!”
तपन ने कहना जारी रखा- “अब हम एक मुहिम चलाएंगे ताकि पुराने वृक्षों को काटने से रोका जा सके और नए वृक्षों को लगाने के अनेक अवसरों का आयोजन किया जा सके. इसके साथ ही कारों का उपयोग कम करने, प्लास्टिक और पॉलिथिन का उपयोग न करने का अभियान भी चलाएंगे, ताकि तुम्हारी तपन भी कुछ हद तक तो शांत हो सके!”
आश्वासन में दृढ़ संकल्प की झलक से ही भयंकर ताप से तपती धरती मां की मुस्कान खिल गई थी.
— लीला तिवानी