कविता

सपनों में ही सही!

उसकी ख्वाहिशें नाचती हैं…
रोज मेरे आंगन में उसके सपनों की बारात आती है..
चांद धुंध की
ओट में रहकर जैसे कुछ
समय के लिये
भले ही धुंधला दिखने लगे,
लेकिन धुंध में नहाई उसकी
चंदनिया की शीतलता
हर मन को शीतल करती है
उसी तरह उनकी ख्वाहिशें
रोज़ नाचती हैं मेरे आँगन में,
उसके सपनों की बारात
आती है।

सपनों में ही सही
मिलन तो होता है!
उनकी यादों का धुँआ
फैला रहता है मेरे दिल
के आँगन में,
याद सरगम बन सीने में
उम्र भर गुंजित होती
रहती है।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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