गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जान लाओ, शरीर ले आओ,
साथ में पर ज़मीर ले आओ।

मार रक्खा है सिकंदर मन में,
ढूंढ कर इक फ़कीर ले आओ।

हमने राजा रखा निशाने पर,
आप अपना वज़ीर ले आओ।

शब्द गुमराह हो रहे, फिर से,
सूर, ग़ालिब, कबीर ले आओ।

दूर दौलत से भरी जेबें हो,
पास दिल से अमीर ले आओ।

बज़्म सूनी पडी है ‘जय’ इसमें,
इक ग़ज़ल बेनज़ीर ले आओ।

— जयकृष्ण चांडक ‘जय’

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से

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